प्रेम ,प्यार, परंपरा और पर्यावरण का संदेश देता हरियाली तीज पर्व
Hariyali Teej festival
Hariyali Teej festival: श्रावण मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया के दिन पूरे उत्तर भारत में मनाया जाने वाला "हरियाली तीज" उत्सव महिलाओं के लिए अति महत्वाशाली है। इस मास में मानसून के चलते काली और घनगौर घटाएं पूरे यौवन पर होती हैं। बरसात के चलते चारों ओर हरियाली ही हरियाली दिखाई देती है, इसलिए इसे "हरियाली तीज" पर्व का नाम दिया गया है।
हरियाणा के सूर्य कवि पंडित लख्मीचंद ने अपनी हरियाणवी रागनी में युवाओं ,महिलाओं में तीज उत्सव के प्रति जिस उत्साह, उल्लास का वर्णन किया है,उससे लगता है कि यह तीज उत्सव महिलाओं में नए जोश-जुनून और नई ऊर्जा का संचार करता है । रागिनी के बोल हैं-----
चौगरदे तै बाग हरया घनघोर घटा सामण की।
छोरी गावैं गीत सुरीले पींग घली कामण की ।।
हरियाणा सहित पूरे उत्तर भारत में सावन और फाल्गुन मास को मस्त-मास के रूप में मनाया जाता है। फाल्गुन में जहां होली -फाग व दूलंहंडी का त्यौहार मनाया जाता है वहीं सावन माह में हरियाली तीज उत्सव मनाया जाता है। वैसे भी भारत में त्यौहार "तीज पर्व" से शुरू होकर होली के बीच ही मनाए जाते हैं ।इसलिए "तीज" से ही त्योहारों की मस्ती उल्लास और उत्साह से शुरू होती है जो लोगों में पूरे साल बनी रहती है।
तीज पर्व का धार्मिक और बहुत बड़ा सांस्कृतिक महत्व है। इसे भगवान शिव और माता पार्वती के पुनर्मिलन के रूप में भी देखा जाता है। इस दिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और सुख-समृद्धि की कामना करती हैं। कुंवारी लड़कियां सुयोग्य वर की कामना के लिए व्रत रखती हैं।तीज पर्व पर महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं, जिससे वे पूरे दिन बिना जल के रहती हैं। इस व्रत को 'निराहार व्रत' भी कहा जाता है। महिलाएं सुबह-सुबह स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करती हैं और भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश की पूजा करती हैं। इस दिन विशेष रूप से भगवान शिव और माता पार्वती की मूर्तियों को सुहाग के प्रतीक वस्त्र और आभूषणों से सजाया जाता है।
तीज उत्सव के अवसर पर शादी शुदा बहनों की ससुराल में भाई विभिन्न पारंपरिक और आधुनिक मिठाइयां लेकर जाते हैं। इसके साथ-साथ उनके सजने संवरने के परिधान भी ले कर जाते हैं। हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के क्षेत्र में इस समृद्ध परंपरा को कोथली कहा जाता है। लड़कियां अपनी ससुराल में इन मिठाइयों को आस-पड़ोस और अपने मिलने जुलने वालों परिवारों में बांटती है। पंडित लख्मीचंद ने भी अपनी रागनी में कहा है--
किसे की कोथली किसे का सिंधारा भर भर भुगटे बांटै ।।
तीज पर्व पर विशेष रूप से घेवर, गुजिया, फेरनी, घेवर ,मीठे बिस्कुट, बतासे, गुलगुले और सुहाली जैसी मिठाइयों और पकवानों का प्रचलन है। इन पकवानों को बनाकर महिलाएं एक दूसरे के साथ बांटती हैं और खुशियां मनाती हैं।
तीज पर्व पर महिलाएं लाल, हरे रंग के पारंपरिक परिधान डालकर झूला झूलती हैं तो यह नजारा तीज पर्व के महत्व को और बढ़ा देता है। वृक्षों पर पड़े झूलों के साथ ही यह महिलाएं लोकगीतों के साथ पारंपरिक नृत्य करती हैं। इस दिन महिलाएं लाल और हरे रंग के वस्त्रों के साथ इन्हीं रंगों की चूड़ियां पहनती हैं, जो सुहाग और हरियाली का प्रतीक हैं। मेहंदी लगाना भी इस पर्व का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
तीज पर्व प्रकृति के प्रति प्रेम और आभार प्रकट करने का भी दिन है। इस समय वर्षा ऋतु होती है और पेड़-पौधे हरे-भरे हो जाते हैं। महिलाएं इस दिन पेड़ों पर झूले डालती हैं और पर्यावरण की सुंदरता का आनंद लेती हैं। इसके साथ-साथ लोग गांव- देहात में अपने घर आंगन तथा जोहड़ों व तालाबों के किनारे पौधारोपण भी करते हैं।
तीज पर्व भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो हमें प्रकृति, परिवार, पर्यावरण और धार्मिक परंपराओं से जोड़ता है। यह पर्व न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह महिलाओं के बीच प्रेम और एकजुटता का प्रतीक भी है। तीज पर्व का पालन कर हम अपनी परंपराओं और संस्कृति को जीवित रख सकते हैं और आने वाली पीढ़ियों को इसका महत्व समझा सकते हैं। पूरे उत्तर भारत में यह पर्व बड़े ही जोश और उल्लास के साथ बनाया जाता है। यहां तक की हरियाणा में तो चंडीगढ़ स्थित राजभवन में "राज्य स्तरीय तीज समारोह" का आयोजन किया जाता है। इस समारोह में हरियाणा के साथ-साथ विभिन्न राज्यों की लोक संस्कृति पर आधारित सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए जाते हैं। महामहिम राज्यपाल और मुख्यमंत्री प्रदेश की जनता को बधाई शुभकामनाएं देते हैं। प्रदेश के सभी प्रशासनिक आला अधिकारीगण भी समारोह में एक दूसरे को तीज पर्व की बधाई व शुभकामनाएं देते हैं। इतना ही नहीं राज भवन प्रांगण में लोग झूलों के साथ-साथ चाय पान और मिठाइयों का आनंद लेते हैं। इस प्रकार से यह त्योहार प्रेम ,प्यार और पर्यावरण के साथ-साथ भारतीय परंपरा को और समृद्ध बनाता है।